अनकहा प्यार (कविता)
अनकहा प्यार
जुटने लगी है
अनगिनत यादों की डोर
दिन-ब-दिन-
मेरे आस-पास
तुझे सहेज कर रखते-रखते
और दूर जाने का
सोचूँ कैसे....
उस टूटन के डर से
औरतेरे पास आऊँ भी तो कैसे
उनमें उलझने के डर से-
उनमें उलझने के डर से....
अनकहा प्यार
जुटने लगी है
अनगिनत यादों की डोर
दिन-ब-दिन-
मेरे आस-पास
तुझे सहेज कर रखते-रखते
और दूर जाने का
सोचूँ कैसे....
उस टूटन के डर से
औरतेरे पास आऊँ भी तो कैसे
उनमें उलझने के डर से-
उनमें उलझने के डर से....