ग़ज़ल
उस ने महफ़िल में बुलाया, न बुलाया दिल से
अपना जलवा तो दिखाया, न दिखाया दिल से
उसकी नज़रें थीं कहीं और, कहीं और थे हाथ
जाम मुझको भी थमाया, न थमाया दिल से
उस के दरबार में मौजूद थे, शायर सारे
शेर मैंने भी सुनाया, न सुनाया दिल से
ज़िन्दगी मुझ को मिली रुखे पड़ोसी जैसी
साथ तो मैंने निभाया, न निभाया दिल से
मेरी आँखों से शबे-हिज्र की लाली न गई
भोर ने मुझ को जगाया, न जगाया दिल से
कामयाबी ने कई बार कसा बांहों में
मुझ को सीने से लगाया, न लगाया दिल से
मुश्किलें बैठ गईं गोद में बच्चे की तरह
प्यार मैंने भी जताया, न जताया दिल से
इस मुहल्ले में वो आएगा सुना है राही
द्वार मैंने भी सजाया, न सजाया दिल से
2.
ज़िन्दगी के दर्दों-ग़म दुश्वार अच्छे मिल गए
नज़्म गढ़ने के लिए औज़ार अच्छे मिल गए
क्यों करूं बेकार उनकी बेवफ़ाई का गिला
उन से मिलकर मुझ को कुछ अशआर अच्छे मिल गए
आजकल तो रोज़ रोजी के लिए खटते हैं लोग
वो हैं ख़ुशक़िस्मत जिन्हें इतबार अच्छे मिल गए
दम घुटा जाता बुज़्ाुर्गों का कि रिश्ते खो गए
नौजवां ख़ुश हंै कि कुछ बाज़ार अच्छे मिल गए
शुक्र है कुछ ख़ून के धब्बे तो राहों पर छपे
उम्र के मुश्किल सफ़र में ख़ार अच्छे मिल गए
दोस्तों की दुश्मनी का सिलसिला जारी रहा
ये ग़नीमत हो गई दो-चार अच्छे मिल गए
अनगिनत हैं लड़कियां बर्बाद-सी शादी के बाद
हैं वो गिनती की जिन्हें परिवार अच्छे मिल गए
झूठ के अम्बार में दब-दब के रह जाता है सच
वे शहर ख़ुश हैं जिन्हें अख़बार अच्छे मिल गए
कुछ जगह मिलते यक़ीनन सुनने वाले शौक़ से
किस तरह राही कहे हर बार अच्छे मिल गए