नज़्म
नज़्म
मुहब्बत का चाँद हो तुम
मुहब्बत का चाँद हो तुम
या कोई तारा हो
जो भी हो हम मान लें कि
बेमिसाल हो।
मौजें हैं, जैसे आखों पे
सागर उभरे हुए
यादें हैं, जैसे दारू के
जाम भरे हुए
गुलाब हो इस चमन का तुम,
वो करार हो
मुहब्बत का चाँद हो तुम .....
काफिले हैं जैसे आस्माँ पे
उड़ते हुए बादल
या हयात के दिल पे सजी
हुई गजल
जाने पुकार तुम किसी
इश्क का नूर हो
मुहब्बत का चाँद हो तुम .......
लबों में फैलती हैं उल्फत की
खुशियाँ
न न दो हमें कभी जुदाई के दर्द
हयात ए याद ओ इश्क़ का
तुम ही करार हो
मुहब्बत का चाँद हो तुम .......