दोहे
इस मदमांत बाग के, बिगड़े सब दस्तूर
बदबू खिल खिलकर हंसे, माथा धुने कपूर
त्याग तपस्या वंदगी, एक न आए काम
दुनियां का बहिरा ख़ुदा, उलट देत परिणाम
वह अब तक समझा नहीं, हूँ दो पाटों बीच
और गाझिन सी हो गई, वह टेªजेडी नीच
तपा बहुत पिघला बहुत, मिली थोक में पीर
तूं क्या? सब रोए यहाँ, मीरा मीर कबीर