गीत
‘देवदास’ यदि तुम ‘पारो’ को मिल जाते तो!
इतनी विरहभरी गाथा यह,
कहीं दुबक कर सोती रहती।
मिलन राग में बजी बाँसुरी,
कहीं बेसुरी होती रहती।
तुम मिल जाते ‘पारो’ भी बस,
सजी-धजी गुड़िया रह जाती।
घर के गहरे कूप उतरती,
कभी नहीं ऊपर आ पाती।
सारे रंग अधूरे रहते, तुम प्रसून से खिल जाते तो
‘देवदास’ यदि तुम ...................................।
अंतर कहाँ पड़ा जीवन में,
तुम रोये या बादल रोये।
किसको पीर दिखा पाये बस,
काँटों में ही उलझे खोये।
कब तक अधरों पर ‘पारो’
मुस्कान सजाये द्वार खोलती।
जब मिल जाये अभीप्सित तब,
वह प्रेम तुला पर किसे तोलती।
चक्रव्यूह में फँस जाने पर बाहर नहीं निकल पाते तो!
देवदास यदि तुम ‘पारो’ को लि जाते तो!